अनुभूति सागर की
पल पल छीन छीन
बहती रहे।
सदियों सी लहरे
रंग रंग मेंफिघ्ले
बरसती रहे।
कहीं तो अटका है मौन
जीवन से छुटती
भिखरती
खुशिया
झांकते सवाल।
खिलता रहे आँगन में पौधा
बांटता सुमन
संग कांटे भी।
औ झंझ्वातो
के रसाल।
.
पल पल छीन छीन
बहती रहे।
सदियों सी लहरे
रंग रंग मेंफिघ्ले
बरसती रहे।
कहीं तो अटका है मौन
जीवन से छुटती
भिखरती
खुशिया
झांकते सवाल।
खिलता रहे आँगन में पौधा
बांटता सुमन
संग कांटे भी।
औ झंझ्वातो
के रसाल।
.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें