गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

समर्पण

अनुभूति सागर की
पल पल  छीन छीन
बहती रहे।
सदियों सी लहरे
रंग रंग मेंफिघ्ले
बरसती रहे।
कहीं तो  अटका है मौन
जीवन से छुटती
भिखरती
 खुशिया
झांकते सवाल।
खिलता रहे आँगन में पौधा
बांटता सुमन
संग  कांटे भी।
झंझ्वातो
 के रसाल।
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