बंधन तो सूत्र है ,
नेह की बाती के
अन्नासक्त हो यूँ,
जीवन में भरम क्या ?
सम्बंध टूटे है ,
तार तार।
अब झीनी सी -
पलक पाँवडो की,
आस बाकी है।
यूँ न कुरेदो होंसले ,
चिंदी-चिंदी हो जाएगी ,
मन की पुकार
मनुहार से खोल लो,
साँकल अभी ही डाली है।
नेह की बाती के
अन्नासक्त हो यूँ,
जीवन में भरम क्या ?
सम्बंध टूटे है ,
तार तार।
अब झीनी सी -
पलक पाँवडो की,
आस बाकी है।
यूँ न कुरेदो होंसले ,
चिंदी-चिंदी हो जाएगी ,
मन की पुकार
मनुहार से खोल लो,
साँकल अभी ही डाली है।
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