गुरुवार, 3 जनवरी 2013

मन की पुकार

बंधन  तो सूत्र है ,
नेह की बाती  के
 अन्नासक्त हो यूँ,
    जीवन में भरम क्या ?
सम्बंध टूटे है ,
           तार तार।
अब झीनी सी -
       पलक पाँवडो की,
आस बाकी है।
   यूँ न कुरेदो होंसले ,
चिंदी-चिंदी हो जाएगी ,
      मन की पुकार
 मनुहार से खोल लो,
साँकल अभी ही डाली है।

        

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