समाज की विकृतियों का
लावा मेरे आस पास तेज़ाब बन
मुझे झुलसा गया है।
आग की लपटों से मेरे
चेहरे का मॉस बहने लगा है।
मेरे सुन्दर नाजुक होंट
कट गएँ है .
मेरे बाकें चक्षु
अंधे कुँए बन गए है।
साँसों को तो किसी तरह
मेरे माँ बाप ने बचा लिया
है लेकिन जग के इन
अंधियारों में कब तक
अपना वर्चस्व अपना
अस्तित्व लिए भट्कुंगी
कितना विवशता है।
कितना निरीह हम समाज.
अपनी माँ, बहन बेटियों
की मान मर्यादा को तार तार
करके उनके रक्त से
उनके मांस से अपनी
कामुक भूख शांत करेगा ?
मेरी विवशता की रग रग में बहता खून
एक दिन तेरे शरीर का
कोढ़ बन जायेगा।
तेरी पत्थर सी संवेदनाओं की
चट्टान तुझे मूक
शमशान बना देगी
अरे कृतघ्न दुराचारी
समाज तेरी माँ बहनों की
निगाह शर्म से गड़ी रह जाएगी
माँ अपनी अभिशप्त कोख को
कोसेगी .
उसका रक्त सर्द सफ़ेद हो जायेगा।
और अब शायद माँ के दूध
का सैलाब ही तेरे जीवन
में प्रलय लायेगा।
लावा मेरे आस पास तेज़ाब बन
मुझे झुलसा गया है।
आग की लपटों से मेरे
चेहरे का मॉस बहने लगा है।
मेरे सुन्दर नाजुक होंट
कट गएँ है .
मेरे बाकें चक्षु
अंधे कुँए बन गए है।
साँसों को तो किसी तरह
मेरे माँ बाप ने बचा लिया
है लेकिन जग के इन
अंधियारों में कब तक
अपना वर्चस्व अपना
अस्तित्व लिए भट्कुंगी
कितना विवशता है।
कितना निरीह हम समाज.
अपनी माँ, बहन बेटियों
की मान मर्यादा को तार तार
करके उनके रक्त से
उनके मांस से अपनी
कामुक भूख शांत करेगा ?
मेरी विवशता की रग रग में बहता खून
एक दिन तेरे शरीर का
कोढ़ बन जायेगा।
तेरी पत्थर सी संवेदनाओं की
चट्टान तुझे मूक
शमशान बना देगी
अरे कृतघ्न दुराचारी
समाज तेरी माँ बहनों की
निगाह शर्म से गड़ी रह जाएगी
माँ अपनी अभिशप्त कोख को
कोसेगी .
उसका रक्त सर्द सफ़ेद हो जायेगा।
और अब शायद माँ के दूध
का सैलाब ही तेरे जीवन
में प्रलय लायेगा।
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