बुधवार, 23 जनवरी 2013

अहंकार

ओह कितना सभ्य समाज हमारा
हम है कितने गर्वीले
सर उठा कर हम है चलतें
प्रकति का दोहन हम करते
बालाओं का चीर हरण
और बहन बेटियों का  शोषण
बड़ा अधिकार हमारा है।
हम है भारत पुत्र मनुवंश्ज
वाह ! वाह ! क्या उच्च स्थान हमारा है।
जिस शक्ति का पूजन करते
अक्षत  कुंकम उसे चढाते
उमड़ उमड़ कर भोग लगाते
उसी शक्ति के अंकुश के
हम रोज सुमन अर्पित करते  है
तेरा अहम की तू इश्वर है।
सारी  प्रकति   तेरी अनुचरी  है
अनुकूल चलें तो सब  तेरा है।
  प्रतिकूल अगर तो इन बगियों की
कलियों के में पंख नोच दूँ
मै असुर और में दानव हूँ
मेरी विरूपता व्याप्त रही
इस समाज के कण कण में
 सिंह नाद मै करूँ विजय का रौद्र
में मानव ईश्वर आत्मज हूँ



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