अनुभूतियो के जंगल,
विश्वास की जमीन ,
अब बंजर हो गयी है।
प्रेम से सीचा जिन्हें
पेड़ है बॊने।
खोटी जाती है हवा,
लय और ताल
मौन है कोयल
खो गयी है आस।
गंध सोंधी मिट्टी की
बोले क्या?
फुहार सावन भादों की,
जेठ का आतप,
झाक्झोंरती हवाए
भागते है सब,,,;;
पहचान अपनत्व की
आकाश हो गयी है।
विश्वास की जमीन ,
अब बंजर हो गयी है।
प्रेम से सीचा जिन्हें
पेड़ है बॊने।
खोटी जाती है हवा,
लय और ताल
मौन है कोयल
खो गयी है आस।
गंध सोंधी मिट्टी की
बोले क्या?
फुहार सावन भादों की,
जेठ का आतप,
झाक्झोंरती हवाए
भागते है सब,,,;;
पहचान अपनत्व की
आकाश हो गयी है।
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