अभिशाप है तू जीवन ,
बौने है सब सहारे
आँगन है सुने पथ से
घर बन गए चौबारे।
विश्वास की लहर से,
सागर बनी थी झीलें
क्या तोड़े अब किनारे ,
युग युग सहजे मन के।
जिस नीव पर खड़े थे,
महलों के रूप स्वप्निल
अब दंश उग गए है ,
इतिहास में तुम्हारे।
मन तू नहीं है ज्ञानी,
निर्बोध शिशु मन का
मांगता क्यूँ सितारे ,
आदित्य के नगर में।
बौने है सब सहारे
आँगन है सुने पथ से
घर बन गए चौबारे।
विश्वास की लहर से,
सागर बनी थी झीलें
क्या तोड़े अब किनारे ,
युग युग सहजे मन के।
जिस नीव पर खड़े थे,
महलों के रूप स्वप्निल
अब दंश उग गए है ,
इतिहास में तुम्हारे।
मन तू नहीं है ज्ञानी,
निर्बोध शिशु मन का
मांगता क्यूँ सितारे ,
आदित्य के नगर में।
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