हर त्रासदी में जीते है ,
रेत के घरोंदो में
नई चेतना भरतें है
अकंशाओ के परदे सीकर
अभवो को छिपाते है
संभावनाओ की अग्नि में
भोजन पकाकर
सपनो को खाते है
आशओं को पीते है
आधिकार जताने को
ज्यों ही पैर पसारते है
रेट के बनाए घरोंदे समतल हो जाते है
इकीसवी सदी में जाते जाते
सिर्फ त्रासदी ही पाते है।
रेत के घरोंदो में
नई चेतना भरतें है
अकंशाओ के परदे सीकर
अभवो को छिपाते है
संभावनाओ की अग्नि में
भोजन पकाकर
सपनो को खाते है
आशओं को पीते है
आधिकार जताने को
ज्यों ही पैर पसारते है
रेट के बनाए घरोंदे समतल हो जाते है
इकीसवी सदी में जाते जाते
सिर्फ त्रासदी ही पाते है।
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