अनुभूति सागर की
पल पल छिन -छिन
बहती रहे।
सदियों सी लहरें
रग रग में पिघले
बरसती रहे।
कहीं तो अटका है मौन .......
जीवन से छुटती
बिखरती खुशियाँ और
झांकते सवाल।
खिलता रहे आँगन में पौधा
बाँटता सुमन,
संग कांटे भी।
औ झंझावातों
के रसाल।
पल पल छिन -छिन
बहती रहे।
सदियों सी लहरें
रग रग में पिघले
बरसती रहे।
कहीं तो अटका है मौन .......
जीवन से छुटती
बिखरती खुशियाँ और
झांकते सवाल।
खिलता रहे आँगन में पौधा
बाँटता सुमन,
संग कांटे भी।
औ झंझावातों
के रसाल।
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