रिश्तों का अवसाद है ये ,
या है ये मन की विकलता।
कौन ढूंढे फासलों में ,
अपनत्व की खोयी मुक्ता।
समय की पाबंदियां हों',
या चलन हो व्यस्तता का।
दूर लहरों से छिडे हम ,
मन ही मन की सबलता।
जिंदगी को हम जो समझे ,
मदमाती थी रागनी। .
यहाँ हर मन में दर्द है ,
विकलता है स्वामिनी।
नीरव आकाश भी
यामिनी में धुलता है।
दिवाकर के ओज में,
भटकने को मन करता है
सांसों में छिपे राज है ,
ज़िन्दगी के द्वार पर।
पहरा सा लग गया है
क्यों दिल की किसी बात पर।
या है ये मन की विकलता।
कौन ढूंढे फासलों में ,
अपनत्व की खोयी मुक्ता।
समय की पाबंदियां हों',
या चलन हो व्यस्तता का।
दूर लहरों से छिडे हम ,
मन ही मन की सबलता।
जिंदगी को हम जो समझे ,
मदमाती थी रागनी। .
यहाँ हर मन में दर्द है ,
विकलता है स्वामिनी।
नीरव आकाश भी
यामिनी में धुलता है।
दिवाकर के ओज में,
भटकने को मन करता है
सांसों में छिपे राज है ,
ज़िन्दगी के द्वार पर।
पहरा सा लग गया है
क्यों दिल की किसी बात पर।
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