शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

तुम्हारा साथ


 तुम्हारा साथ
बीते  हुए पल
  ज्यों फैलती सुंगंध
  मधुर यादों की
 बारात, मनोरम उपवन
   तुम्हारा साथ ...........

भीगता पलाश
पल पल की महक,
सागर में किल्लोरती
लहरों का संग ,
      तुम्हारा साथ ..... .

 एक  छाँव 
तनिक विश्राम,
पलकों में झरता प्रकाश
मधुवनी वसंत
 तुम्हारा साथ ....

शिथिल मन की
एक ठाँव ,अनकहे
 प्रसंग फिर
याद आता है एक नाम
तुम्हारा  साथ ......

आंसुओं का सैलाब
तड़पती पीड़ा का अनुभाव
मानो दिल पर रखी कोई किताब
तुम्हारा साथ ...
 
अनगिनत भूलें , लहरों का आना
और चले जाना , घर्षण के साथ
केवल, अविचल खड़ा
बना चट्टान
तुम्हारा साथ

जागे अभिलाषाओ के सोपान
उत्कर्ष और जीवन करता
मधु पान,सौ-सौ धंधो का व्यापार ,
नदी का बहता हुआ बहाव
तुम्हारा साथ

बड़े प्रयत्नों की सौगात
बड़ी आशा और विश्वास
जीवन नैया खेने  वाला, है
असीम पतवार
तुम्हारा साथ

बड़ी कोशिशो का आगाज़
बड़ी घुटन सी मिली निजात
बड़ी उमस थी हुई बरसात
इन्द्रधनुषी गगन
तुम्हारा साथ

क्या घटा क्रूर काल के हाथ/
बंद मुट्ठी से सरका  रेत
रीता मन
करुण क्रन्दन  अवशेष
तुम्हारा साथ

अदभुत पीड़ा , स्तब्ध मौन
फीकी सी मुस्कान
दर्द को बढा  रहे तुम कौन ?
अहो! सानिध्य माँ का स्पर्श
तुम्हारा साथ।
तोड़ कर मन ,
जोडती परिमल मालाएँ
 रात का उपहास
 फिर  भी  बेला  की  गंध 

 तुमहरा  साथ
भीगती  बयारों  में 
 नटखट ,जूही  की बात
 अव्यक्त  वेदना औ
  हर्ष का  संग

 तुम्हारा साथ
 समय  की  सधी  हुई  
 एक  सीख
 स्मित मीठी सी फटकार











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