मेरी बच्ची ,तुम्हारी पीड़ा से
में आहात हूँ
वीभास्त सन्नाटा मेरे चारों
ओर पसर गया है
लेकिन तुम्हारीं दर्दनाक चीखें
मेरे आस पास तक गूँज रही है
मेरी बंद आँखों की अवचेतना में
न्रशंस ,असंवादें शीलता की
काली स्याह चट्टानें उभर आई है
अपने ही बच्चो की गन्दी
मानसिकता के धुंधलके ने
मुझे ढ़ाप लिया है
रोशनी के जद्दोजहद में
में सिहर जाती हूँ ।
पसीने से तर मेरे ललाट की
नसें पीड़ा से खिंच जाती है।
और दबे होटों में लाचार
देखती तुम एकाएक मौन
हो जाती हो ।
में बेबस बस न्याय के लिए
भीख मांगती हूँ।
मैं बेटियों की माँ हूँ।
और अपनी इन
बेटियों के लिए समाज से,
देश से ,सुरक्षित क़ानून
चाहती हूँ।
सुरक्षित,स्वस्थ परिवेश
मांगती हूँ।
कब तक में इस पुरुष वर्चस्व
समाज में तुम्हारी ओर उठने
वाली गन्दी निगाहों से ,बलात आपदाओं से
तुम्हे छिपाती रहूँगी।
आखिर कब तक।
में आहात हूँ
वीभास्त सन्नाटा मेरे चारों
ओर पसर गया है
लेकिन तुम्हारीं दर्दनाक चीखें
मेरे आस पास तक गूँज रही है
मेरी बंद आँखों की अवचेतना में
न्रशंस ,असंवादें शीलता की
काली स्याह चट्टानें उभर आई है
अपने ही बच्चो की गन्दी
मानसिकता के धुंधलके ने
मुझे ढ़ाप लिया है
रोशनी के जद्दोजहद में
में सिहर जाती हूँ ।
पसीने से तर मेरे ललाट की
नसें पीड़ा से खिंच जाती है।
और दबे होटों में लाचार
देखती तुम एकाएक मौन
हो जाती हो ।
में बेबस बस न्याय के लिए
भीख मांगती हूँ।
मैं बेटियों की माँ हूँ।
और अपनी इन
बेटियों के लिए समाज से,
देश से ,सुरक्षित क़ानून
चाहती हूँ।
सुरक्षित,स्वस्थ परिवेश
मांगती हूँ।
कब तक में इस पुरुष वर्चस्व
समाज में तुम्हारी ओर उठने
वाली गन्दी निगाहों से ,बलात आपदाओं से
तुम्हे छिपाती रहूँगी।
आखिर कब तक।
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